Saturday 3 October, 2009

हरीश भादानी को जगदीश्वर चतुर्वेदी की श्रद्धांजलि

हिंदी के प्रसि‍द्ध जनकवि‍ हरीश भादानी का आज नि‍धन हो गया। उनका हिंदी की लोकप्रि‍य प्रगति‍शील परंपरा में महत्‍वपूर्ण योगदान था। मंचीय कवि‍ताओं से लेकर साहि‍त्‍यि‍क कवि‍ताओं के श्रेष्‍ठतम प्रयोगों का बेजोड़ खज़ाना उनके यहां मि‍लता है। हिंदी और राजस्‍थानी कवि‍ता की पहचान नि‍र्मित करने में हरीशजी की केंद्रीय भूमि‍का थी।‍ हरीश भादानी राजस्‍थान के बीकानेर में रहते थे। वहीं पर आज उनका नि‍धन हुआ। वे कुछ समय से अस्‍वस्‍थ चल रहे थे। जनता के संघर्षों और ज़‍िंदगी के साथ एकमेक होकर जीने वाले कवि‍ थे। आम जनता में हरीश जी की कवि‍ताएं जि‍स तरह जनप्रि‍य थीं, वैसी मि‍साल नहीं मि‍लती। राजस्‍थान के वि‍गत चालीस सालों के प्रत्‍येक जन आंदोलन में उन्‍होंने सक्रि‍य रूप से हि‍स्‍सा लि‍या था। राजस्‍थानी और हिंदी में उनकी हज़ारों कवि‍ताएं हैं। ये कवि‍ताएं दो दर्जन से ज्‍यादा काव्‍य संकलनों में फैली हुई हैं। इसके अलावा सैंकड़ों अप्रकाशि‍त कवि‍ताएं भी हैं। मजदूर और कि‍सानों के जीवन से लेकर प्रकृति‍ और वेदों की ऋचाओं पर आधारि‍त आधुनि‍क कवि‍ता की प्रगति‍शील धारा के नि‍र्माण में उनकी महत्‍वपूर्ण भूमि‍का थी। इसके अलावा हरीशजी ने राजस्‍थानी लोकगीतों की धुनों पर आधारि‍त सैंकड़ों जनगीत लि‍खें हैं, जो मजदूर आंदोलन का कंठहार बन चुके हैं।

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