Thursday 20 August, 2009

बंगाल के लोकसभा चुनाव का महत्त्व; लोक सभा चुनाव के पूर्व एक दृष्टि

बंगाल में इस लोकसभा चुनाव के साथ यह एक नये प्रकार की राजनैतिक शुरूआत हो सकती है.
यह कहा जाता है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक सक्रिय और ज़िम्मेदार विपक्ष ज़रूरी है. बंगाल में राजनैतिक परिदृश्य पर सी. पी. एम. का वर्चस्व तीन दशकों से जारी है. दो साल पहले तक इसके सामने खडे होने लायक विपक्ष दूर दूर तक दिखलाई नहीं पड रहा था, लेकिन इस समय विपक्ष वामपंथ को गंभीर चुनौती दे रहे हैं. सभी 42 सीटों पर कांटे की लड़ाई होगी. तीन कारणों से यह चुनाव महत्त्वपूर्ण है. प्रथम, केन्द्र में कौन नेतृत्व करेंगे- कांग्रेसी, भाजपाई या फिर तीसरी शक्ति इसे तय करने में बंगाल के नतीज़े निर्णायक हो सकते हैं. अगर वामपंथी तीस के आसपास सीटें बंगाल में जीतते हैं तो सत्ता पर नियंत्रण वामपंथियों का हो सकता है. लेकिन अगर 20 सीटें भी दूसरे दल जीतते हैं तो कांग्रेस की केन्द्र में स्थिति मजबूत होगी. वैसे यह भी संभव है कि उस स्थिति में केन्द्र में कांग्रेस शासन में आये और वामपंथी दल बी जे पी को रोकने के लिए बाध्य होकर कांग्रेस का समर्थन करे.
दूसरा, बंगाल में इस चुनाव में अगर गैर वामपंथी 22 सीटें जीतते हैं तो बंगाल में विधान सभा भंग करने के लिए बहुत दबाव बनेगा. जिस प्रकार की राजनीति चल रही है और विरोधी दलों में शत्रुता बढ रही है ऐसा लगता है वामपंथी राज खतरे में पडेगा और बहुत उग्र किस्म की राजनैतिक लड़ाई यहां शुरू होगी. अभी तक बहुत सारे लोगों को लगता है कि वामपंथी तंत्र इतना शक्तिशाली है कि तमाम असंतोष और विरोध को दबाकर वोट की राजनीति में सी. पी. एम. सफल हो जायेगी. जैसे ही यह आभास होगा कि यह तंत्र अब शक्तिशाली नहीं रह गया है तमाम शक्तियां खुल कर सामने आने लगेंगी जो अभी चुपके चुपके वामपंथियों के राजनैतिक अवसान के लिए प्रार्थना करते हैं और भय से आगे आने से डरते हैं.
तीसरा और हम जैसों के लिए ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है वामपंथ का इस राज्य और देश में भविष्य. इसमें संदेह नहीं कि बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में जिस तरह से सिंगुर, नन्दीग्राम और लालगढ के मसले पर सरकार आगे बढी है उसके खिलाफ एक वातावरण इस राज्य में बना है. बडी संख्या में वामपंथी बुद्धिजीवियों का जो एक स्वत:स्फूर्त जुलूस नन्दीग्राम ह्त्याकाण्ड के बाद निकला वह वामपंथी राजनीति के संकट को प्रस्तुत करने वाला था. सी पी एम के भीतर अभी एक मंथन का दौर चलना चाहिए. वामपंथी राजनीति का शक्तिशाली रहना इस देश के पिछडे समुदायों के लिए आवश्यक है लेकिन वामपंथी राजनीतक वर्चस्व का दौर अब बंगाल में बीत चुका है और अब एक जिम्मेदार लोकतांत्रिक दल के रूप में अपने को पुनर्गठित करने की तैयारी सी पी एम को करनी पड सकती है अगर इस चुनाव में वह कम सीटें लेकर लौटती है.
यह चुनाव सेमीफाइनल है, आखिरी और निर्णायक लड़ाई तो बंगाल में अगला विधान सभा चुनाव के समय होनी है.

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